बिटकॉइन या म्यूचुअल फंड, दोनों में किसमें पैसा लगाना फायदेमंद होगा?
बाजार में आजकल दोनों की मांग खूब है, इसलिए यह सवाल सवाल उठ रहा है. जानकार बताते हैं कि दोनों के अपने-अपने फायदे हैं. यह खरीदने वाले पर निर्भर करता है कि उसे किसमें लाभ ज्यादा दिखता है. जैसा कि सबको पता है कि कुछ पैसों में शुरू हुआ बिटकॉइन आज 40 लाख तक पहुंच गया है. जब इतना लाभ मिलेगा तो कौन इसमें निवेश करना नहीं चाहेगा. कुछ यही हाल म्यूचुअल फंड का है. लेकिन दोनों में निवेश करने का तरीका बिल्कुल भिन्न है.
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Bitcoin एक क्रिप्टोकरेंसी है जबकि म्यूचुअल फंड निवेश का जरिया जिसमें लोग पैसे लगाते हैं और फंड मैनेजर उसका प्रबंधन करते हैं. बिटकॉइन में दो तरह से निवेश कर सकते हैं. पहला, बिटकॉइन खरीदें और उसे तब तक होल्ड करें जब तक दाम खूब न उछले. मुनाफा दिखते ही बिटकॉइन बेच कर अच्छा पैसा बना सकते हैं. दूसरा, माइनिंग के जरिये भी बिटकॉइन में पैसा कमा सकते हैं. म्यूचुअल फंड के साथ ऐसी कोई बात नहीं है. ये फंड सीधे तौर पर म्यूचुअल फंड कंपनियों, बैंक या किसी ब्रोकरेज फर्म से खरीदें जाते हैं.
बिटकॉइन-म्यूचुअल फंड में अंतर
‘CNBCTv18’ को बैंकबाजार के CEO आदिल शेट्टी बताते हैं कि बिटकॉइन या म्यूचुअल फंड में निवेश करने से पहले किसी व्यक्ति को पहले ही तय कर लेना चाहिए कि निवेश में आगे क्या करना है, किस तरह का रिटर्न पाने की इच्छा है और वे रिटर्न की चाह में कितने दिन तक म्यूचुअल फंड को रोक कर रख सकते हैं. निवेश करने वाले व्यक्ति अपनी जोखिल लेने की क्षमता को भी आंक लेना चाहिए. अगर वे रिस्क लेने को तैयार हैं तो उन्हें म्यूचुअल फंड में आगे बढ़ना चाहिए.
रिस्क लेने वालों के लिए बिटकॉइन
अगर किसी एसेट की कीमत लगातार चढ़ाई पर है, दाम लगातार ऊपर भाग रहे हैं तो इसे कम अवधि के लिए लेना जोखिम का काम हो सकता है. शेट्टी कहते हैं, लेकिन हमें यह भी जान लेना चाहिए कि उस एसेट को ज्यादा से ज्यादा कितने दिनों तक लाभ की चाह में रोक कर रख सकते हैं. क्रिप्टोकरंसी में लोगों की दिलचस्पी तेजी से बढ़ रही है. इस पर शेट्टी की सलाह है कि पैसा उसी चीज में लगाना चाहिए जो पहले से जाना-पहचाना और आजमाया है, जिसके भाव गिरने-चढ़ने की संभावना कम हो. इस हिसाब से म्यूचुअल फंड ज्यादा सही है. अगर रिस्क लेने में कोई दिक्कत नहीं है तो क्रिप्टो में भी निवेश कर सकते हैं.
Share और म्यूचुअल फंड का फायदा
कुछ ऐसी ही सलाह ‘फिनवे एफएससी’ के संस्थापक और सीईओ रचित चावला भी देते हैं. चावला का कहना है, जब कोई निवेशक शेयर खरीदता है तो वह सही मायनों में मालिक हो जाता है क्योंकि कंपनी की कुछ हिस्सेदारी शेयर खरीदने वाले के पास भी आ जाती है. यही फायदा निवेशक को म्यूचुअल फंड और इक्विटी में होता है. दूसरी तरफ बिटकॉइन का बिजनेस अनुमानों पर आधारित है और इसमें यह भी पता नहीं कि इसके पीछे कौन है, किसके पास मालिकाना हक है.
Bitcoin पर भरोसा नहीं
चावला कहते हैं, बिटकॉइन लॉन्ग टर्म में ज्यादा रिटर्न दे सकते हैं लेकिन इसका कोई भरोसा नहीं. रिटर्न मिलेगा ही, ऐसा निश्चित तौर पर नहीं कह सकते. जहां ज्यादा रिटर्न मिलने का अनुमान होता है, वहां रिस्क भी ज्यादा होता है. बिटकॉइन के साथ यही बात है. सो, कई जानकार सलाह देते हैं कि जिस व्यक्ति को रिस्क लेने में कोई दिक्कत नहीं, लॉन्ग टर्म में लाभ की इच्छा हो और अनुमान के साथ खेलने की आदत हो तो वह बिटकॉइन में मजे से पैसा लगा सकता है.
अनुमानों का खेला
बिटकॉइन के साथ बिल्कुल दूसरे तरह की बात है. यहां अनुमानों पर नहीं खेला जाता क्योंकि इसका सोर्स पता है, किसी फंड मैनेजर के जरिये मैनेज किया जाता है और इसका सही रेगुलेशन भी है. साल दर साल इसमें लाभ मिलने की गुंजाइश है, सिवाय बाजार में कोई बड़ी हलचल न हो जाए. हालांकि म्यूचुअल फंड में भी रिस्क कम नही है लेकिन बिटकॉइन जैसी हालत नहीं होती. बिटकॉइन की तुलना में देखें तो म्यूचुअल फंड का बिजनेस ज्यादा खुला और पारदर्शी है. हमें पता होता है कि कहां पैसा लग रहा है और बढ़ रहा है तो उसकी वजह क्या है और घाटा है तो क्यों है.